Tuesday, September 25, 2012

sahpathi

स्कूल में साथ पढने वाला सोलह वर्षीय सहपाठी लड़का यह जानता है कि अगर सहपाठी लड़की के पिता और बड़े भाई को यह पता चल जाए कि लड़की की रूचि पढाई में कम और लड़कों से बात करने में ज्यादा है तो वे लड़की का स्कूल जाना बंद कर देंगे।चूंकि साथ पढने वाली लड़की किसी दूसरे लड़के से बात करती है।इस खुन्नस में उसे सबक सिखाने की मंशा से उसके बड़े भाई तक यह बात सहपाठी लड़का पहुँचा देता है और उम्मीद के मुताबिक लड़की के पिता और भाई उसका स्कूल जाना बंद कर देते हैं।नये जमाने के पढ़े लिखे लोगों ने लड़की के पिता की पिछड़ी मानसिकता पर लानत मलामत जताई।पिता की उम्र पचास की है और जिस सहपाठी लड़के ने शिकायत की  वह सोलह साल का  स्कूली छात्र है , लेकिन दोनों की मानसिकता ,मंशा  एक ही है।क्या शिक्षा प्राप्त करने वाले सोलह वर्षीय लड़के की मानसिकता में  पढाई लिखाई से किसी बदलाव की उम्मीद संभव नहीं ? स्कूली शिक्षा पुरुषत्व के पुश्तैनी संस्कारों में कब बदलाव लाएगी कि सहपाठी लड़के साथ पढने वाली लड़कियों पर कब्जे की मानसिकता में ढलने से बच जाएँ और सहयोगी साथी की भावना रखें। या फिर सोलह वर्षीय किशोर और पचास के पिता की संस्कारी मानसिकता में शिक्षा के द्वारा बदलाव की  कोई उम्मीद संभव नहीं ?

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