"लिलीज़ ऑफ द फ़ील्ड्स ' जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते .."
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एक दिन एक तेईस -चौबीस साल की लड़की अपने साथ एक सोलह -सत्रह साल की लड़की को लेकर सामने आ खड़ी हुयी .....
दोनों वर्किंग वीमेन हॉस्टल में रूममेट थीं। बड़ी लड़की अपनी ट्रेनिंग के बाद नौकरी कर रही थी और छोटी पढ़ रही थी ..दोनों में बड़ा प्यार दिख रहा था क्योंकि उनमें एक दूसरे फिक्र दिखाई दे रही थी।
दरअसल बड़ी लड़की छोटी लड़की की चिंता कर रही थी कि इसके इम्तहान होने वाले हैं और ये हैं कि बार- बार किसी के ख्यालों में गुम हो जाती हैं ,...किसी के मोबाइल की घंटी का इंतज़ार करते करते ही सारा वक़्त गुजार देती है ......
सोलह -सत्रह साल की लड़की ने भी अपनी पलकें नीची किये हुए हामी भरी ,जैसे अपना किया गुनाह कबूला हो .....
उसका हामी भरना था कि मेरा मन कहीं भीतर तक लबालब होने लगा। मन के साथ आँख तक हरी भरी हो गयी।
आँख ने देख लिया था मन की उस पहली प्रेमिल सुनहरी रंगत भरी छुअन को जिससे वह लड़की सराबोर हो रही थी।
मैंने उस बड़ी लड़की की तरफ देखा जो छोटी लड़की की शिकायत कर रही थी .......मेरे भीतर उसके लिए दुआ में मेरे हाथ उठ रहे थे .....
मैं लौट रही थी कई साल पहले जब मेरे साथ की कई लड़कियाँ अपने कानों में घंटियाँ सुन रहीं थीं ....
घाटियाँ बजने पर हमेशा ख़ुशी की परन बज उठती हैं ...
स्कूल में , मंदिर में,गिरजाघर में, और मोबाइल में .......
मैंने उस छोटी लड़की की झुकी हुयी पलकों को सुनानी चाही वह कहन जो निर्मल वर्मा ने ईसा के हवाले से लिखी - "धूप में खिले-खिले 'लिलीज ऑफ द फील्ड' ,जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते "......
प्रेम की पहली छुअन में खोये रहना बार -बार बिलकुल ऐसा ही है -
"लिलीज ऑफ द फील्ड ,जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते "......
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कंचन
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