Friday, August 16, 2013

टूटन ,…उसकी ! 
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आज वह अपने आँसू पोंछती 
मेरे पास जमानत के रुपयों का 
इंतजाम करने रात के अँधेरे में 
भरोसा किये चली आई थी 

हर सुबह हँसती आती थी वह 
आज देर रात तक ज़ार-ज़ार 
रोये जा रही थी बिना रुके 

पति खून से लथपथ 
 पड़ा था हॉस्पिटल में 
बेटे ने  पीटा था उसे 
लोहे की रॉड से सबके सामने 

 दिन भर काम करती ,थकती 
 और रात को पीकर आया नशेड़ी पति
 जवान बेटे के सामने ही माँ को 
अपना माल समझ उसकी टांगो से लिपटा
 उसके कपड़े खींचे,नोचे और फाड़े जा रहा था 

"इतना तो साथ चलने वाला
 ग्यारह वर्षीय भाई भी समझता था 
 उसने चाचा के सिर पर 
 सड़क पर पड़े पत्थर को दे मारा था 
 जब वह उसकी आठ साल की बहन 
 की सलवार उसी के सामने खींच रहा था 
 तब गाँव की बात थी तो थाना पुलिस नहीं हुआ था 
 आज पड़ोसी ने पुलिस को फोन कर दिया था 
 जब नासपीटा रोज हड्डियाँ तोड़ता था मेरी 
 तब कोई नहीं बुला के बचाता था मुझे 
 आज बेटे ने माँ की लुटती आबरू बचायी 
 तो पुलिस उठा ले गयी उसे "

जवान लड़का भूल गया उस वक्त रिश्ता 
मर्द की हवस को पहचान रहा था 
पूरी ताकत से माँ का क़र्ज़ और 
भाई के फ़र्ज़ को निभा गया 

आज उसकी बारी थी तो 
अब तक निभाती आयी अपने 
हाड़-तोड़ पत्नी फ़र्ज़ को भूलने चली 
वह सिर्फ़ माँ होकर सामने खड़ी थी 
अपने बेटे की ज़मानत के रुपयों के लिए 

भूल चुकी थी अपना औरत होना 
जितना पिटती थी हर रात 
उतनी ही तेजी से घिसती थी
 हर सुबह सबके बर्तन और फ़र्श 

उसकी हँसी से गूँज उठता मेरा फ़र्श !!!
 किसको भनक थी कि यह उसकी  
 फ़र्श से अर्श तक की 
 हर रोज़ की गूँजती टूटन थी 

आज अगर कहूँ कि आदमी 
अक्सर कुत्ता बनकर ही 
अपनी असलियत दिखाता है 
तो न जाने क्या -क्या 
स्त्रियों के लिए कहा गया 
मेरे सामने रख दिया जाएगा ……

हमेशा टांगों पर ही टूटते है दोनों 
एक मांस खींचता ,एक सलवार 
शायद दोनों ही मांस नोचते !!

 वह आज सिमटी पड़ी थी मेरी बाहों में 
 जो हर रोज़ बिखरी थी अपने आस-पास। 
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कंचन 

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