Thursday, February 6, 2014

मेरी आँखें सपना देखती हैं ------------------
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बहुत सारे लोग लेखिका मैत्रेयी पुष्पा का नाम दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा पद के लिए प्रस्तावित किये जाने पर अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर कर रहे हैं.…

मैं उनकी माता कस्तूरी को याद कर रही हूँ ----लाली तुझे चूड़ी ,बिंदी और पति की सेवा करने के लिए नहीं पढ़ाया था ---------------------

मुझे राजेंद्र यादव जी भी याद आ रहे हैं ---------

मुझे 2001 का अपना एक सपना याद आ रहा है जब मेरी आँखों ने * चाक *पढ़कर महिलाओं के जुलूस के आगे सारंग को नहीं *मैत्रेयी *को देखा था-----------

मुझे * इदन्नमम * की मंदा याद आ रही है जो ठेकेदारों के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ती है।
सारंग शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ती है। अल्मा भी राजनीतिक हलके तक शिरक़त करती है। मुझे * फैसला * कहानी की वसुमती याद आ रही है----

जब दिल्ली की सड़कों पर लोग भ्र्ष्टाचार के विरोध में सड़कों पर जमा थे तब मेरी आँखों में एक सपना कौंधा था कि क्या किसी दिन स्त्रियों की लड़ाई के लिये इसी तरह जुलूस सड़क पर होगा ? और मैत्रेयी उसके आगे चलेंगी ------जैसे अपने कॉलेज में लड़ रही थीं व्यवस्था के ख़िलाफ़ ! क्या यह आवाज़ कागज़ के पन्नों से निकलेगी बाहर !!

फिर सोलह दिसम्बर के विरोध में सड़क पर जुलूस निकल आया -------

जब दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के समूह को मैत्रेयी जी की आवाज़ ने सम्बोधित किया , तब वह *कॉलेज वाली क्रांतिकारी पुष्पा* मुझे मैत्रेयी की आवाज़ में लौटती दिखी---

मेरी आँखों ने उनसे कहा कि वे जल्दी ही मैत्रेयी की रची स्त्रियों को राजमार्ग पर जाते देख रही हैं और मैत्रेयी को उनसे आगे-आगे संसद कि तरफ ---------------------

मेरे सपने पर वे हँसी .......
उनकी हँसी से हलचल मचती है यह तो आप जानते ही हैं ------------

मैं अपनी आँखों कि शुक्रगुज़ार हूँ कि वे सपना देखती हैं
मैं मैत्रेयी जी की हँसी की शुक्रगुज़ार हूँ कि वे हँसती हैं

यह जो कुछ यहाँ कहा है वह आज का रचा नहीं हैं ----
पिछले चौदह वर्षों से रच रही हूँ नयी भाषा की तलाश में --
जो मैत्रेयी पुष्पा की कलम से निकले साढ़े पाँच हज़ार छपे पन्नों में ढूंढती हूँ
(हाँ ,पन्नों कि संख्या गिनी हुयी है )

यह आज तो सिर्फ़ आप के लिए कहा है
*आप * का शुक्रिया
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