- ज़मीन / आसमान....... ?
____________________________________
उसने रोज़ अपना रुख़ आसमान का किया
छीनी गयी किसी रोज़ उसकी ज़मीन हँसते हुए
उसने जिया हर साँस को हज़ार साँसों की तरह
निकले हर राह घायल पाँव नये सपने लिए हुए
उसने आँख खोली साज़ खोले नयी धुन तड़प उठी
खुल पड़ते थे उसके पांवों के घुँघरू बँधे हुये
उसने अपनी ज़ुबाँ में लिखे कई नए शब्दकोष
लौटी पीछे नज़र तो हँसे कई साल बिखरे हुए
उसने किया ऐलान तो घंटे बजे , उठ गयी नयी दुआ
गुज़र जाए वह जिस ज़मीन से मिले हाथ खिले हुए
________________________________________________
कंचन
No comments:
Post a Comment