Sunday, June 15, 2014

भीड़ /गैंग से संवाद करना होगा!
भीड़ में कोई मदद करने नहीं आता.…
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लड़की भीड़ में भी अकेली होती है
लक्ष्मी का चेहरा एसिड का शिकार भीड़ में हुआ
प्रीती ने अपना जीवन भीड़ भरी ट्रेेन में खोया
अरुणिमा को भीड़ भरी ट्रेन से फेंक दिया गया
पूर्वोत्तर के लड़के को भीड़ ने पीटकर मार डाला
लोकल बस ,मेट्रो में भीड़ रगड़ देती है पूरा बदन 
भीड़ औरत को सड़क पर नंगा कर रही है
लड़कियाँ गैंग रेप का शिकार होती हैं …

माँ सिखाती रही हमेशा कि
सूने रास्तों पर न जाना
भीड़ में कोई डर नहीं होता!
बार -बार सरकार ने भी नोटिस चिपकाये
कि लड़कियाँ सुनसान रास्तों से गुजरते हुए
सावधान रहें।

अकेले मिलने पर इंसानी दर्प से चेहरा चमक उठता है
वही चेहरा भीड़ में शामिल होकर जहरीला दंश हो जाता है ?

जो अपने घर में स्त्री को हर वक़्त टीसता है
वही भीड़ में जाकर मानवता के नारों की गूँज उठाता है

स्त्रियाँ भी भीड़ के सशक्तिकरण में गूँज उठती है
तीन पग में धरती नापने का हौसला भरती हैं
लेकिन अकेले एक सड़क तक पार नहीं कर पातीं

नागपुर के कोर्ट में औरतों की भीड़ ने ताकत दिखाई
यही ताकत दिसंबर घटना में देश को जगा गयी

एक भीड़ फिर घरों में जाकर अकेली दुबक गयी
एक नई भीड़ रेप को गैंगरेप में बदल गयी
अब रेप नहीं गैंगरेप का जलजला आता है

भीड़ घर- घर में आग फूंक देती है
भीड़ जिन्दा जला तक देती है

खौफ़नाक भीड़ में पागल हुए इंसानों को
बाहर लाने की भाषा की तलाश में हूँ

भीड़ से संवाद करती भाषा का गल्प रचने की उधेड़ बुन में हूँ
क्योंकि भीड़ में कोई मदद करने नहीं आता ....

निजी संवाद की भाषा में तो पुरुष स्त्री से मोहक सुरक्षित बातें कर लेता है
निजी तौर पर हर कोई इंसानियत का साथ दे देता है
लेकिन भीड़ में मदद से पहले लिबास,भाषा और नाम देखा जाता है
अपनी जातिगत अस्मिता की पहचान देखी जाती है

क्या इसीलिए लड़की भीड़ में भी डरती है ?
और इंसान कहीं सुस्ताने से पहले
भीड़ के चेहरे पहचान लेना चाहता है ?

हमें भीड़ से इंसान को बाहर लाने की खातिर
भीड़ से संवाद करना होगा

क्योंकि भीड़ में कोई मदद नहीं करता
क्योंकि भीड़ की ताकत घर तक साथ नहीं जाती

क्योंकि भीड़ के हमले से अकेले बचना भी तो मुमकिन नहीं होता....
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कंचन

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