Sunday, June 15, 2014

आवाज़ उठती है तो तालियाँ तो बजती हैं ....
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सिनेमा हॉल की स्क्रीन पर सीन चल रहा है.…

जिसमें एक लड़की जिसका अपहरण हुआ है और हाथ-पाँवों से बंधी पड़ी है. उसे देखते हुए हॉल में बैठे पांच छह लड़कों का ग्रुप बात करता है कि ''देख ले इसके कपड़ों में क्या -क्या दिख रहा है " जबकि लड़की दृश्य में रो रही है।
जिसमें एक लड़की जो अपने बचपन के घावों को याद करके चीख़ती है.. उसे देखते हुए हॉल में बैठे पांच छह लड़कों का ग्रुप अपशब्दों भरी भाषा में अपने डायलॉग से ऐसे दृश्यों को अश्लील बनाता हैं जिन्हे फ़िल्म के दृश्य में अश्लील नहीं दिखाया गया।

इतनी गन्दी भाषा उनके आगे की पंक्ति में बैठी एक लड़की बर्दाशत नहीं कर पाने के कारण फ़िल्म छोड़कर चली जाती है। लेकिन उन पांच छह लड़कों की अश्लील कमेंट्री चालू रहती है।

अचानक सिनेमा हॉल में तीन चार स्त्रियों की तेज आवाज़ आती है "उठाकर फेंक दो इन लड़कों को हाल से बाहर …बुलाओ गॉर्ड को "
उनका इतना कहना था कि पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। …

इसके बाद तो फ़िल्म के पूरे होने तक उन पांच छह लड़कों में से किसी ने कोई आवाज़ नहीं निकाली।

आवाज़ उठती है तो तालियाँ तो बजती हैं
ग़लत आवाज़ें इसी तरह बंद होती हैं।
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kanchan

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