Sunday, June 15, 2014

मौत से बार-बार इतना सामना होना भी तो ठीक नहीं कि मरने से लगने वाला डर जाने लगे और मरने की चाह उठने लगे। आखिर कितना समझाया जाये दिल को ? मौत तो हर तरफ बिखरी पड़ी है। लगता है जैसे ज़िंदा लोगों को देखकर अट्टहास कर रही है। कोई उम्र हो जाने से जा रहा है तो कोई असमय ही कैंसर, हार्टअटैक ,ब्रेन हैमरेज से चल दिया। सामूहिक रूप में कभी ट्रेन के पलट जाने से तो कभी पहाड़ी जलजला के जाग जाने से इकट्ठे हजारों की तादाद में लोग काल का ग्रास बन जाएँ। प्रकृति की ख़ूबसूरती देखते बीस लोग अचानक तेज पानी के बहाव में बह जाएँ। कोई अपनी छवि की फ़िक्र में छत से कूदकर मिट जाये तो किन्ही नाबालिग लड़कियों को बलात्कार के बाद मारकर पेड़ से लटका दिया जाये। कोई ऑनर किलिंग में जान से जाये तो कोई अपने माता-पिता का सामना न कर पाने से खुद ही स्कूल की छत से कूदकर जान दे दे। किसी को ससुराल में ज़हर देकर मार दिया जाए तो कोई खुद ही धोखा खाकर गले में फन्दा लटकाकर अलविदा कह जाए। ऑफिस में साथ बैठने वाले मित्र की अगले दिन हार्टअटैक से मृत्यु की ख़बर और फिर छह महीने बाद ही उनकी पत्नी का कैंसर से चले जाना और उनके बच्चों का अचानक अनाथ हो जाना। पिछले दस वर्षों में परिवार के छह लोगों का चले जाना जिनमें एक को छोड़कर बाकी सब पैंसठ के भीतर की उम्र के रहे। शेष ज़िंदा बचे भी सब तितर- बितर। लड़कियों और बहुओं का क्या भावनात्मक लगाव कहीं। उनका लगाव तो उनकी कैद की चहारदिवारी है। वहाँ से बाहर उनकी कोई आवाज़ नहीं जाती। कई बार मुर्दों में ज़िंदा भी शामिल नज़र आते हैं। यह बार-बार मौत से सामना कमजोर कर रहा है या मज़बूत बना रहा है। कितनी कठोर है यह मौत की शक्ल में रोज़ गले लगती ज़िंदगी। है कोई ऐसा दिन जब कोई अख़बार मौत की ख़बर के बिना छपा हो। चेहरे से हँसी अब ग़ायब होती जा रही। आइना भी अब कभी मुस्कुराता नहीं। बैकग्राउंड में संगीत मौत का बजता है। उफ्फ़ ! लतीफों के ऐप्प भी मिलने लगे हैं। मौत ज़िंदगी का मखौल उड़ाकर हंसने लगी है। मौत अब हर चौराहे , बेधड़क दिन में तीन बार की ख़ुराक की शक़्ल में पुड़िया बनी जेब में पड़ी रहती है। इतने कठोर सच का बार-बार सामना करना और फिर दर्शन के शास्त्र में कान दिए जाना ही अगर ज़िंदगी है तो मौत क्या बुरी ? जिन्हें संघर्ष करते और फाकामस्ती से जीते देखकर जीते हैं लोग… वे खुद भी मौत के हमले से कहाँ बच पाते ? तो फिर सारे कारज क्या जीवन काटने भर के लिए मौत के इंतज़ार में किये जाते हैं ?

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